मेरे बचपन से स्टोरीवीवर तक… ( एक संस्मरण )

Posted by Remya Padmadas on September 22, 2016

बचपन मैं सभी बच्चों की तरह मुझे भी कहानी सुनने का बड़ा शौक था। खुशकिस्मती से मुझे कहानी सुनाने के लिये घर में अनेक लोग थे जैसे दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन। ननिहाल जाते तो वहाँ नाना-नानी, मामा, मौसी...। कहीं भी हम होते रात को किसी न किसी से कोई न कोई मज़ेदार कहानी(यां) सुनकर ही सोते। मैं जब थोड़ा बड़ा हुआ और पढ़ना सीख गया तो अखबार और पत्रिकाओं में बाल साहित्य पढ़ने लगा। इस तरह कहानियां पढ़ने-लिखने का शौक लगा। 

स्कूल के दिनों में छुट्टियाँ खेलने कूदने और कोमिक्स, बाल पत्रिकाओं में छपने वाली कहानियाँ, कवितायें या बाल उपन्यास पढ़ने में बीतती थीं। नन्दन, लोटपोट, चंपक, चन्दामामा - कुछ नाम याद हैं। चंदामामा में कहानियों के साथ छपने वाले चित्र और कहानियाँ बेहद रोचक होते थे। 

जब मैं झाँसी में कक्षा आठ में पढ़ता था एक दिन मैंने एक छोटी-सी कविता लिखी और भाई-बहनों को सुनायी। पहले उन्हें भरोसा नहीं हुआ की मैंने वह कविता लिखी है। उन्हें लगा कि झूठी शान दिखाने के लिये मैं किसी और की लिखी हुई कविता सुना रहा हूँ। मैंने उन्हें शपथ लेकर कहा तो माने और उन्होंने कविता की तारीफ की। वह कविता मैंने दैनिक जागरण के बाल मण्डल के संपादक को प्रकाशन के लिये भेज दी। संयोग से वह स्वीकृत हो गयी और कुछ दिन बाद प्रकाशित हो गयी। समाचार पत्र में छपी अपनी रचना को देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। परिवार और पड़ोस के लोगों ने भी तारीफ की और मेरा उत्साह बढ़ाया। फिर कभी-कभी मैं कविता, कहानी, लेख इत्यादि लिखने लगा। उनमें से कुछ स्कूल और कालेज की पत्रिकाओं और स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए।

नौकरी में आने बाद व्यस्तता बढ़ी और वातावरण बदल गया जिससे मेरा पढ़ना-लिखना बहुत कम हो गया । फिर विवाह हुआ और एक पुत्री का पिता बना। मैं, मेरी पत्नी और पुत्री अब एकल परिवार की शक्ल में, घर से दूर, एक दूसरे शहर में थे। जब पुत्री थोड़ी बड़ी हुई तो मेरी कहानियों में पुनः रुचि हुई। मैंने उसके बचपन में उसे, अपने बचपन की कहानियाँ सुनायीं और कुछ अपनी कल्पना से पिरोकर नयी कहानियाँ भी बनायीं। उसे कहानियाँ सुनने में आनंद आता था और मुझे सुनाने में। फिर वो बड़ी हो गयी अब उसे कहानियाँ सुनाने की आवश्यकता नहीं रही।

कभी-कभी मैं लिखता रहा, लेकिन मैंने बाल साहित्य नहीं टटोला था। हाल ही में इन्टरनेट पर कुछ खोजते हुए मुझे https://storyweaver.org.in/ मिला तो मुझे आश्चर्यजनक प्रसन्नता हुई। यह बच्चों और बड़ों, दोनों के लिये, रुचिकर है, सुगम है और निःशुल्क है। इसने मुझे बच्चों की कहानियों की तरफ पुनः आकर्षित किया और मैंने कुछ कहानियाँ लिखीं। बड़ा अच्छा लगा जब अपनी हिन्दी कहानी का अंग्रेजी  और तेलगु अनुवाद देखा। इस साइट पर बच्चे भी आसानी से अपनी कल्पना से चित्र सहित कहानियाँ लिख सकते हैं। 

स्टोरीवीवर (https://storyweaver.org.in/) बच्चों के लिये बहुत उत्कृष्ट समाज सेवा का कार्य कर रहे हैं। मैं इन्हें बहुत बधाई और शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ। 

रवि रंजन गोस्वामी की बुनी हुई कहानियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए…

 

 



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