If you've noticed a spate of translations to Tibetan on StoryWeaver recently, then you can give the credit to Tenzin Dhargyal. An English teacher at TCV School, Suja, Himachal Pradesh, Tenzin came across StoryWeaver while browsing through Facebook. He reached out to us and asked if we could add Tibetan to the platform so that he could translate and create stories for students.
"I am translating these books so that I can inspire other Tibetan teachers to translate children’s stories to the language. There is a real dearth of good quality stories for kids in Tibetan."says Tenzin.
Tenzin Dhargyal, English Teacher, TCV School, Suja, Himachal Pradesh.
Tenzin has been working with children for a long time now and felt that while his students had many books to choose from in English, there just wasn't enough choice when it came to Tibetan.
The Tibetan Children’s Village school is a charitable institution with classes from Kindergarten to Standard XII. Tenzin has already shared stories with some of the children online and has plans to download, print and share copies of the stories with his colleagues for them to use in the classroom.
"Storyweaver can be very helpful indeed! Students can read and get motivated to translate some short, level 1 stories to Tibetan language. This can be also an activity for them. Our teachers can translate some of the stories in Tibetan and use them in class. In fact, some of them have already done this." shares the enthusiastic teacher.
Tenzin reached out to other teachers through a Facebook group he is a part of with links to StoryWeaver and requested them to use the platform for translation. They all answered his call and responded, and Tenzin is confident that others will follow suit. Mr. Tenzin Dorjee la, the Principal of a Tibetan school in Dharamsala and his children have translated two stories and Dr. Chok who works in the Library of Tibetan Works and Archives in Dharamsala and Jigme Wangden la who teaches Tibetan at TCV School have all been active on StoryWeaver.
You can read all the Tibetan translations by Tenzin and his colleagues here.
"All children are equal, they are the future owners of this planet." says Tenzin "Lets make them good human beings through the morals from these stories we tell."
If you would like to translate or create stories on StoryWeaver and can't find your language of choice, write to us at [email protected] with your request.
Here's to spreading the joy of reading to more children in as many languages as possible.
comments (2)Rajesh Khar, Editor (Pratham Books), writes about the journey of a special set of books created last year.
उत्तरप्रदेश के एक गाँव में एक स्कूल में बहुत सारे बच्चे एक कहानी बुनने में मग्न थे। वे कई सारे रंग बिरंगे चित्रों के इर्दगिर्द बैठे थे और इस कदर व्यस्त थे कि उन्हें शिक्षिका के कक्षा में होने का आभास भी नहीं हो रहा था। आखिरकार कुछ देर बाद एक बच्ची ने अपनी कहानी बुन ही ली और ख़ुशी से उछलने लगी। थोड़ी देर में एक एक करके बाकी सब ने भी अपनी कहानियाँ बना लीं। अब शिक्षिका का ध्यान आया और सब के सब उनकी और दौड़े। दीदी की आँखें चमक उठीं। इतने सारे बच्चों ने इतनी सारी कहानियाँ जो बुन ली थीं। उनको बड़ा अच्छा लग रहा था कि कहाँ तो ये बच्चे लिखने के नाम परकतराते थे और दो-चार लाईनें लिख कर हाथ खड़े देते थे, वहीं आज बिना किसी चूं चां के उन्होंने कहानी लिख ली थी। दीदी ने वो सारी कहानियाँ पढ़ीं, उनमें गलतियाँ तो थीं और कुछ में तो वाक्यों के बीच विराम चिन्ह भी नहीं थे लेकिन ये सभी कहानियाँ उन बच्चों की अपनी कहानियाँ थीं। सब के अपने शब्द, अपने वाक्य, अपने अनुभव और अपने संसार थे। पहली बार इसका अहसास हुआ था उन सब को।
यह एक स्कूल की कहानी नहीं थी, कई राज्यों के बहुत सारे स्कूलों के बच्चे पहली बार अपनी मनपसंद चित्रों पर अपनी कहानियाँ लिख रहे थे और इतनी सारी नयी कहानियाँ बुनी जा रही थीं। इन हज़ारों बच्चों के शिक्षक ख़ुश हो रहे थे और दूर दिल्ली में बैठे हुए कुछ लोग जिन्होंने बड़ी मेहनत करके सिर्फ़ थोड़े ही समय में ५५ नयी किताबें तैयार की थीं, उन्हें स्कूलों तक पहुँचाया था और टीचर्स को प्रशिक्षित भी किया था।
अप्रैल २०१५ के पहले सप्ताह में प्रथम के दिल्ली वाले दफ़्तर में रुक्मिणी बैनर्जी के कमरे में उनके कुछ सहकर्मी और प्रथम बुक्स के कुछ कर्मी आपस में गहन विचार कर रहे थे कि अब की बार बच्चों को कैसी नयी पुस्तकें दी जाएं ताकि उनके पढ़ने-लिखने का शुरुआती सफ़र आसान और मज़ेदार हो पाए। प्रथम ने बहुत सालों बाद फिर से पुस्तकालयों को सुदृढ़ बनाने की सोची थी। रुक्मिणी चाहती थीं कि नया सत्र शुरू होने तक बच्चों के पास पढ़ने को और उन्हें शब्दों की और आकर्षित करने को कुछ अच्छी सामग्री पहुँच जाये। उन्होंने ही इस चक्र को गति दी और फिर उनके कहने पर न केवल प्रथम के लोग बल्कि प्रथम बुक्स के संपादक समूह के लोग एक जुट होकर उन किताबों को तैयार करने लग गए। कैसी किताबें? उनमें क्या होगा और किस प्रकार की होंगी यह सब तो तय ही हो रहा था। केवल इतना तय था की कम से कम ५० और हिन्दी भाषा में होंगी।
प्रथम बुक्स में मनीषा चौधरी और उनके सहकर्मी जुट गए अलग अलग प्रकार की कहानियाँ तय करने में और उन सब को ऐसे प्रारूपों में ढालने में कि बच्चों को पसंद भी आएं और उनको पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया की ओर प्रेरित भी कर सके। पूरे अप्रैल और मई के महीनों में किताबें बनाने की प्रक्रिया चलती रही। प्रथम बुक्स ने कुछ ही समय पहले अपने नए नवेले स्टोरीवीवर प्लेटफार्म पर चित्रकारों के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की थी जिसमें ६५ से ज़्यादा चित्रकारों ने सिर्फ़ ६ चित्रों में अपनी अपनी कहानी भेजी थी। मनीषा और उनकी टीम को बिना शब्दों वाली पुस्तकें तैयार करने की सामग्री मिल गयी थी। उन्होंने २० ऐसे प्रारूप तैयार किये और साथ ही साथ ओडिशा की ४ जनजातीय भाषाओँ में तैयार की गयी किताबों में से भी कुछ को चुना गया। प्रथम समूह के साथ अनगिनत बैठकों में तैयार सामग्री पर चर्चा होती रही और फिर आख़िरकार एक एक करके किताबें चुनी जाने लगीं। फिर शुरू हुआ उनको डिज़ाइन करके हर तरह से प्रकाशन के योग्य बनाने का काम। यूँ तो इस काम के सभी चरणों को पार करने में कई समय लग जाता है पर इस बार तो समय जैसे था ही नहीं। कड़ी मेहनत से सब ने मिलकर सभी किताबों को तैयार किया, उनको छपने भेजा और जून से पुस्तकें छप कर आनी शुरू हो गईं।
फिर शुरू हुआ उन्हें १० हज़ार से ज़्यादा स्कूलों तक किताबें उनकी ज़रुरत और बच्चों के पठन स्तर के अनुसार और प्रथम के कार्यक्रम के अनुसार! इतनी जगहों तक किताबें भेजने का काम बहुत बड़ा था और वेयरहाउस के लोगों ने दिन रात लगा कर लगभग एक महीने में किताबें वहाँ वहाँ पहुंचाईं जहाँ उनको पहुँचना था।
छुट्टियों से लौटे बच्चों को इतना बढ़िया तोहफ़ा मिलेगा, उनको उम्मीद भी नहीं थी। उनके शिक्षकों में से कुछ को और प्रथमके अपने लोगों को उन सब किताबों और कार्डों को बच्चों के साथ प्रयोग का प्रशिक्षण भी मिल चूका था। सब कुछ युद्ध स्तरपर किया गया था। तो क्या आश्चर्य की बात थी कि सभी इतने खुश थे! बच्चों ने उनका क्या इस्तेमाल किया और किस तरह इस सामग्री का असर पढ़ने-लिखने में हो रहा था, इस सबका अध्ययन भी किया जा रहा है। प्रथम की टीमें धीरे धीरे इस कार्यक्रम सभी पहलुओं पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
स्कूलों में शिक्षक मज़े से बच्चों द्वारा लिखे, कहे जाने वाले अफ़सानों को पढ़-सुन कर ख़ुश हैं, लेकिन अभी भी इस नयी पठन सामग्री का क्या क्या असर हो रहा है, उसे समझने, परखने में समय लगेगा। उससे पहले ही प्रथम और प्रथम बुक्स एक और नया सेट तैयार करना चाहते हैं...देखिये क्या क्या तैयार होगा
जब बच्चों की कलम चली तो फिर चलती रही ! उत्तरप्रदेश के जैतपुर, प्रतिष्ठानपुर के प्राथमिक विद्यालयों की कक्षा २ व् ३ की छात्राओं की कहानियों की एक छवि।
(This post first appeared on the Pratham Books blog, here.)
Be the first to comment.Are you celebrating Mother's Day today? Are you taking your ma out for brunch, have you sent her flowers and a thoughtful gift? Are you at the receiving end of a whole lot of love? Or, like some, do you think it's just another Hallmark Holiday? Well, however you're spending the day, we think you'll like our tribute to Pratham Books StoryWeaver mothers. We've shared the links to the books (and mothers) featured below.
Counting on Moru by Rukmini Banerji and Nina Sabnani
In Moru's world, numbers danced, digits waved out and long division looked ike a graceful tail. But one day, this world came crumbling down in school. Moru then became the local bully. Then, someone helped him discover the joy of learning again. Read all about it in this heartwarming story.
चुन्नु-मुन्नु का नहाना by Rohini Nilekani, Sumit Sakhuja and Sonal Goyal
पानी, साबुन के बुलबुले और उछल-कूद। देखिए तो चुन्नू मुन्नू कैसे मज़े ले रहे हैं !
काकूचं बाळ by Sahitya Akademi Bal Sahitya Puraskar awardee Madhuri Purandhare
अनू अगदी उत्साहानं काकूचं बाळ बघायला जाते. आई आणि काकू मात्र सारखं त्याचंच कौतुक करतात. अनूला ते मुळीच आवडत नाही.
मेरा दोस्त by Swati Priyanka, Rupesh Sudhanshu and Suvidha Mistry
सोनू को मिला एक नया दोस्त। दोनों साथ में बहुत मज़े करते थे। क्या तुम्हे भी पसन्द है नए दोस्त बनाना ? आओ पढ़ते हैं एक अनोखी दोस्ती के बारे में।
ಸುಶೀಲಾಳ ಕೋಲಮ್ಗಳು originally by Sridala Swami and Priya Kurian, translated by Bhavya
ನೀವು ಕೋಲಮ್ ನ್ನು (ರಂಗೋಲಿಗಳನ್ನು) ಮನೆಯ, ಶಾಲೆಯ ಅಂಗಳಗಳಲ್ಲಿ ನೋಡಿರಬಹುದು. ಆದರೆ ಎಂದಾದರೂ ಆಗಸದಲ್ಲಿ ಕೋಲಮ್ ನ್ನು ನೋಡಿದ್ದೀರಾ? ಪುಟ್ಟ ಸುಶೀಲಾಳ ಕೋಲಮ್ ಬಾನಿನಲ್ಲಿ ಅರಳಿದ್ದು ಹೇಗೆ ಎಂದು ತಿಳಿಯಬೇಕೇ? ಓದಿ ನೋಡಿ!
(You can read 'Susheela's Kolams' in English)
'I Want That One!' by Mala Kumar and Soumya Menon
"Not that one," says Anil's mother when he asks for something. "Not that one!" say all the shopkeepers in the market too. That makes the little boy very angry indeed!
'The Birthday Party' by Megha Vishwanath and Team StoryWeaver.
After his birthday party, the boy in the story opens his gifts and is thrilled to find a camera. But as he's playing with his new gift, he notices his mother crying in the kitchen. Find out what he does next! This is a lovely wordless book created by the StoryWeaver team with Megha Vishwanath's #6FrameStoryChallenge entries)
மணிகண்டனுக்குப் போதும் originally by Anil Menon and Upamanyu Bhattacharyya, translated by S Krishnan
மணிகண்டனுடைய தாயத்து அவன் எப்போது சந்தோஷமாக இருக்கிறான்,எப்போது வருத்தமாக இருக்கிறான், உடல் நலத்தோட இருக்கிறானா இல்லையா என்பதையெல்லாம் சொல்லிவிடும். எப்போது சாப்பிடணும், எப்போது தூங்கணும் என்பதைச் சொல்வது, அவன் வீட்டுப்பாடத்தைச் செய்வதற்கு உதவி செய்வது, அவன் நலமாக இல்லை என்பதை அம்மாவிடம் தெரியப்படுத்துவது போன்ற பல வேலைகளைச் அது செய்யும். இது மாஜிக்கா இல்லை அறிவியலா? மணிகண்டனும் அவன் அம்மாவும் கிராமத்திலிருந்து ஒரு நவீன நகரத்துக்கு போகும்போது என்ன நடக்குதுன்னு பாருங்கள்.
(You can read 'Manikantan Has Enough' in English.)
గుడ్ నైట్ టింకూ! by Preethi Nambiar, Sonal Goyal and Sumit Sakhuja and translated by Janaki Rani Turaga
మంగూ రైతు పొలంలో ఉండే చిన్న కుక్క పిల్ల టింకూకి అస్సలు నిద్ర రావడం లేదు. రాత్రి చీకట్లోకి వెళ్లి చూద్దామని బయలుదేరిన టింకూ, ఎన్నో ఆసక్తికరమైన జంతువులను కలుసుకున్నాడు. టింకూ రాత్రి షికారు గురించి మరింత చదవండి.
(In English, as 'Goodnight Tinku')
Would you like to give an extra special gift for a mother you know? Head over to www.storyweaver.org.in and create a story just for them! You can tell us about the story by emailing us at storyweaver.org.in or sharing it with us on Facebook and Twitter. Don't forget to tag it #MothersDay!
Be the first to comment.